उर्दू सहारा समूह के पूर्व संपादक जसीम मोहम्मद पर कसा कानूनी शिकंजा –दर्ज हुई एफआईआर

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 (रईस खान)

पूर्व एएमयू मीडिया सलाहकार और अलीगढ़ के जाने-माने पत्रकार, लेखक और शिक्षाविद् डॉ. जसीम मोहम्मद एक बार फिर सुर्खियों में हैं।प्रधानमंत्री के नाम पर बनाए गए “नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र (Centre for Narendra Modi Studies – सीएनएमएस)” को लेकर अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने उनके खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की है।

आरोप है कि यह संस्था 25 जनवरी 2021 को भारतीय न्यास अधिनियम, 1860 के तहत बिना केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति लिए पंजीकृत की गई थी। शिकायत पीएमओ के सहायक निदेशक द्वारा दी गई थी, जिसके आधार पर अप्रैल 2025 में प्रारंभिक जांच शुरू हुई और अक्टूबर में एफआईआर दर्ज कर दी गई।

 

जसीम मोहम्मद के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक अलीगढ़ निवासी अधिवक्ता मुस्ताक अहमद हुसैन ने यह शिकायत 28 सितंबर 2024 को पीएमओ कार्यालय से की थी। 

नमो अध्ययन केंद्र के प्रबंध नियासी व मुकदमे में आरोपी प्रोफेसर जसीम मोहम्मद का कहना है कि सेंटर फॉर नरेंद्र मोदी स्टडीज 2021 में नियम कानून के अनुसार शुरू किया गया था। इसका नाम बाद में बदलकर सेंटर फॉर नमो स्टडीज किया गया था और यह पंजीकृत है। पूर्व में सीबीआई जांच में सभी आरोप निराधार पाए गए हैं। सीबीआई को सभी सबूत भी उपलब्ध कराए गए हैं। यह केंद्र किसी से भी चंदा नहीं लेता है। अब जो आरोप लगाए गए हैं वह गलत हैं। हम सीबीआई की जांच का पूर्ण सहयोग करेंगे और अपने मानकों को बनाए रखेंगे।

डॉ. जसीम मोहम्मद कौन हैं?

डॉ. जसीम मोहम्मद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व मीडिया सलाहकार रह चुके हैं। वे लंबे समय तक उर्दू पत्रकारिता से जुड़े रहे और राष्ट्रीय उर्दू सहारा अख़बार तथा सहारा समूह के उर्दू चैनल आलमी सहारा टीवी के समूह संपादक भी रह चुके हैं। वे जामिया उर्दू, अलीगढ़ के निदेशक के रूप में भी काम कर चुके हैं और उर्दू शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। जसीम मोहम्मद की पहचान एक लेखक और शोधकर्ता के रूप में भी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और नेतृत्व शैली पर कई किताबें लिखीं, जिनमें “स्टेट्समैन नरेंद्र मोदी”, “मन से जन तक, नरेंद्र मोदी” और “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: एक वैश्विक यात्रा” जैसी रचनाएँ शामिल हैं।

पूर्व राजनीतिक और अकादमिक पृष्ठभूमि

डॉ. जसीम मोहम्मद का नाम 2014 से पहले एएमयू और अलीगढ़ की सामाजिक-सांस्कृतिक हलचलों में सक्रिय रूप से जुड़ा रहा। वे फोरम फॉर मुस्लिम स्टडीज़ एंड एनालिसिस नामक संगठन के संस्थापक रहे, जिसने कभी भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना की थी। लेकिन बाद के वर्षों में उन्होंने मोदी सरकार की योजनाओं और विकास दृष्टिकोण पर अध्ययन शुरू किया और सीएनएमएस की स्थापना के माध्यम से खुद को “नई नीति सोच” के शोधकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया। उनके इस परिवर्तन ने उर्दू जगत और अकादमिक समुदाय में हैरानी भी पैदा की। ‘द प्रिंट’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिया ‘ जैसी रिपोर्टों के अनुसार, पहले मोदी-विरोधी रहे जसीम मोहम्मद धीरे-धीरे “मोदी स्टडीज़” के प्रचारक बन गए।

एएमयू में विवाद और मीडिया गतिविधियाँ

2018 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई एक घटना में जसीम मोहम्मद का नाम चर्चा में आया था, जब कुछ छात्रों ने उन्हें धमकी दी और उस पर पुलिस में हत्या के प्रयास की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, वे उस समय विश्वविद्यालय के मीडिया सलाहकार के रूप में कार्यरत थे और छात्रों के एक गुट से उनका विवाद हुआ था। इसके बावजूद, जसीम मोहम्मद ने पत्रकारिता और शोध दोनों क्षेत्रों में सक्रियता बनाए रखी। उन्होंने ‘मिल्ली गजट,’ :आईबीजी न्यूज़’ और अन्य मंचों पर लगातार लेख प्रकाशित किए और भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोदी सरकार के कामकाज पर विश्लेषण लिखे।

नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र विवाद: नाम, अनुमति और संवेदनशीलता

“नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र” नामक संस्था का उद्देश्य कथित तौर पर नरेंद्र मोदी के विचार, शासन मॉडल, आत्मनिर्भर भारत, सामाजिक न्याय, और विकास योजनाओं पर अध्ययन व संवाद करना बताया गया। सीएनएमएस की वेबसाइट पर कई ऐसे कार्यक्रम, सेमिनार और प्रकाशनों का उल्लेख है जिनमें प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को केंद्र में रखा गया। हालाँकि, प्रधानमंत्री के नाम से किसी संस्था को चलाने के लिए सरकार या पीएमओ की अनुमति आवश्यक होती है। सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुमति न ली गई थी। इस बिंदु पर पूरा मामला संवेदनशील बन गया और अब सीबीआई ने जाँच का दायरा बढ़ा दिया है।

मीडिया और जनप्रतिक्रिया

राष्ट्रीय मीडिया ने इस घटना को “प्रधानमंत्री के नाम के दुरुपयोग” से जुड़ा मामला बताया है, जबकि कुछ उर्दू और स्थानीय प्रकाशनों ने इसे “राजनीतिक और प्रशासनिक गलतफहमी” करार दिया है। सीएनएमएस के समर्थकों का कहना है कि संस्था का उद्देश्य केवल शोध और विचार-विमर्श था, न कि किसी राजनीतिक लाभ का।

आगे की प्रक्रिया

सीबीआई अब सीएनएमएस के दस्तावेज़ों, बैंक खातों और फंडिंग के स्रोतों की जांच कर रही है। यदि अनुमति उल्लंघन और नाम के गलत उपयोग की पुष्टि होती है, तो आगे कानूनी कार्रवाई की संभावना बन सकती है। जसीम मोहम्मद की ओर से इस विषय पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है।

डॉ. जसीम मोहम्मद का सफर अलीगढ़ के एक उर्दू पत्रकार से लेकर प्रधानमंत्री पर शोध करने वाले “नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र” के संस्थापक तक का है। अब वही संस्था, जो मोदी मॉडल पर अध्ययन के लिए बनी थी, प्रधानमंत्री कार्यालय की शिकायत और सीबीआई की जांच के घेरे में है। यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर नहीं, बल्कि इस प्रश्न पर भी केंद्रित है कि क्या किसी सार्वजनिक पदधारी के नाम का उपयोग बिना अनुमति शोध या प्रचार के लिए किया जा सकता है।

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