दिल्ली हाईकोर्ट का हालिया फैसला जामिया मिलिया इस्लामिया और उसके शिक्षक संघ (JTA) के बीच हुए विवाद में एक बड़ा संदेश देता है। अदालत ने कहा कि जामिया प्रशासन द्वारा शिक्षक संघ को भंग करने का फैसला गलत था, क्योंकि इससे शिक्षकों के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार, यानी संगठन बनाने और चलाने की आज़ादी, का उल्लंघन हुआ।
जामिया प्रशासन ने 2022 में शिक्षक संघ के चुनाव रोक दिए और उसका दफ्तर तक सील कर दिया था। शिक्षकों ने इसे अदालत में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि विश्वविद्यालय किसी का संगठन सिर्फ इसलिए खत्म नहीं कर सकता कि उसे उसके काम करने का तरीका पसंद नहीं आया।
यह फैसला उन सभी जगहों के लिए अहम है, जहाँ प्रशासन या सत्ता अपने अधिकारों का इस्तेमाल मनमानी तरीके से करती है। अदालत ने बताया कि कानूनी ताकत कभी भी संविधान से ऊपर नहीं हो सकती।
शिक्षक संघ जैसे संगठन किसी भी लोकतांत्रिक संस्थान की रीढ़ होते हैं। वे संवाद, सुझाव और सुधार की आवाज़ होते हैं। अगर उन्हें दबा दिया जाए, तो संस्थान सिर्फ हुक्म चलाने की जगह बन जाते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला एक याद दिलाने जैसा है कि लोकतंत्र सिर्फ संसद या सरकार में नहीं, बल्कि हर संस्था में होना चाहिए। यह फैसला बताता है कि अधिकारों की रक्षा तभी होती है, जब कोई उन्हें बचाने के लिए खड़ा होता है।
-क़ौमी फ़रमान डिजिटल मीडिया नेटवर्क

