सफ़ीना हुसैन वो रौशनी है जिसने लाखों बेटियों की ज़िंदगी बदल दी

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(रईस खान)

तालीम सिर्फ़ स्कूल जाने का नाम नहीं, यह ज़िन्दगी में रोशनी लाने का ज़रिया है।” – सफ़ीना हुसैन

एक ख़्वाब जो हक़ीक़त बन गया

सफ़ीना हुसैन आज उस नाम से जानी जाती हैं जिसने भारत की 20 लाख से ज़्यादा ग़रीब बच्चियों को तालीम से जोड़ दिया। उन्होंने एजुकेट गर्ल्स नाम की संस्था 2007 में शुरू की, जिसका मक़सद है कि हर लड़की स्कूल जाए और अपनी ज़िन्दगी खुद बनाए। उनकी इस कोशिश को दुनिया ने सलाम किया और साल 2025 में उन्हें एशिया का सबसे बड़ा सम्मान, “रेमॉन मैगसेसे अवार्ड” दिया गया।

बचपन और शुरुआती ज़िन्दगी

सफ़ीना का ताल्लुक़ दिल्ली से है। उनके वालिद यूसुफ़ हुसैन मशहूर थिएटर और फ़िल्म एक्टर थे, और वालिदा उषा हुसैन हिंदू परिवार से थीं। इसलिए उनका घर एक संस्कृति और सोच का संगम था।

स्कूल के दिनों में सफ़ीना को एक वक़्त ऐसा आया जब उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। बाद में उन्हें एहसास हुआ कि अगर वो लड़की पढ़ाई से दूर रह सकती है तो गाँव की लाखों बच्चियाँ तो और ज़्यादा पीछे रह जाती होंगी। इसी सोच ने उन्हें लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स तक पहुँचाया, जहाँ से उन्होंने आगे की तालीम हासिल की और फिर पूरा ध्यान समाज के लिए काम करने पर लगाया।

एजुकेट गर्ल्स” – जब ख्वाब ने ताबीर पाई

2007 में राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एजुकेट गर्ल्स की शुरुआत हुई। ये वो इलाक़ा था जहाँ स्कूल से बाहर रहने वाली लड़कियों की तादाद बहुत ज़्यादा थी।

सफ़ीना ने सोचा, “अगर हर घर में कोई एक शख़्स बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए समझाए, तो हालात बदल सकते हैं।” इसलिए उन्होंने एक नया मॉडल बनाया। टीम बालिका के तहत गाँव के नौजवान और औरतें, जो घर-घर जाकर बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए लोगों को समझाते हैं।

सरकारी स्कूलों से साझेदारी करके मौजूदा स्कूलों का बेहतर इस्तेमाल हो रहा है। डेटा और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए ये टीम हर गाँव का डेटा जुटाती है कि कौन-सी बच्चियाँ स्कूल से बाहर हैं।

अब धीरे-धीरे ये मुहिम राजस्थान से बढ़कर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और दूसरे इलाक़ों तक पहुँच गई।

कामयाबी की मिसालें

आज “एजुकेट गर्ल्स” की बदौलत, 20 लाख से ज़्यादा बच्चियाँ स्कूल से जुड़ चुकी हैं। लाखों बच्चों की लर्निंग यानी पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार आया है। सफ़ीना ने दुनिया का पहला डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड लागू किया, जिसमें पैसा उसी प्रोजेक्ट को मिलता है जो असल में नतीजा दिखाए।

2023 में उन्हें वाइस प्राइज़ फ़ॉर एजुकेशन मिला, ये भी पहली बार किसी भारतीय महिला को मिला था। और फिर 2025 में उनका सपना मुकम्मल हुआ, रेमन मैगसेसे अवार्ड।

ज़िन्दगी का दूसरा पहलू, घर और रिश्ते

सफ़ीना की ज़िन्दगी में हंसल मेहता का साथ बहुत अहम रहा। वो मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर हैं। दोनों 17 साल तक साथ रहे और 2022 में उन्होंने शादी की। उनकी दो प्यारी बेटियाँ हैं, किमाया और रेहाना। सफ़ीना कहती हैं , “मैं माँ भी हूँ और एक वर्कर भी। दोनों किरदार मुझे ताक़त देते हैं।”

चुनौतियाँ और सोच

सफ़ीना कहती हैं कि गरीबी, पितृसत्ता, और कमजोर इन्फ़्रास्ट्रक्चर, ये तीन दीवारें हैं जो लड़कियों को स्कूल जाने से रोकती हैं। वो कहती हैं , “हम सिर्फ़ स्कूल नहीं बना रहे, हम सोच बदल रहे हैं। लड़की कोई बोझ नहीं, वो एक सपना है।”उनका मानना है कि “एजुकेशन ” से ज़्यादा अहम है “एस्पिरेशन”, यानी बच्ची के अंदर सपने देखने की हिम्मत जगाना।

भविष्य की मंज़िल

सफ़ीना और उनकी टीम का मक़सद है कि साल 2035 तक एक करोड़ से ज़्यादा बच्चियों को स्कूल से जोड़ा जाए। अब वो नॉर्थ-ईस्ट भारत और छोटे राज्यों में भी ये मॉडल फैलाना चाहती हैं।

वो बेटी जो दूसरों की रौशनी बन गई

सफ़ीना हुसैन की कहानी एक ऐसी औरत की है जिसने अपनी तक़दीर को दूसरों की ज़िन्दगी की रौशनी बना दिया। उनका काम बताता है कि अगर नीयत साफ़ हो और इरादा मज़बूत, तो एक लड़की भी लाखों ज़िंदगियाँ बदल सकती है। “हर बेटी जो पढ़ती है, वो सिर्फ़ अपनी नहीं, पूरे समाज की किस्मत लिखती है।”

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