डॉ. ओबैद सिद्दी़की (1932–2013) का जीवन इस बात का उदाहरण है कि गहराई से की गई जिज्ञासा और मेहनत किस तरह विज्ञान में चमत्कार पैदा कर सकती है। बस्ती (उ.प्र.) में जन्मे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई शुरू करने वाले सिद्दी़की आगे चलकर दुनिया के सबसे सम्मानित वैज्ञानिकों में गिने जाने लगे।
शुरुआती सफर: AMU से विदेश तक
अलीगढ़ की कक्षाओं में ज्ञान की बुनियाद रखने के बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लास्गो से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया गए, जहाँ गुइडो पोंटेकोर्वो जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक के साथ शोध किया। यह वह दौर था जिसने उनके वैज्ञानिक करियर की दिशाएं तय कर दीं।
वैज्ञानिक उपलब्धियाँ: दिमाग और व्यवहार को समझने की कोशिश
डॉ. सिद्दी़की को न्यूरोजेनेटिक्स, यानी दिमाग, नसों और जीन के संबंध, में उनके काम के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। उन्होंने छोटी-सी फ्रूट फ्लाई (ड्रॉसोफिला) का उपयोग करके यह समझने की कोशिश की कि जीव कैसे महसूस करते हैं, सुनते हैं, स्वाद पहचानते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं। उनके काम ने दुनिया को यह समझने में मदद की कि हमारे मस्तिष्क और जीन मिलकर कैसे काम करते हैं।
NCBS के संस्थापक: भारत में विश्व-स्तरीय विज्ञान की नींव
भारत लौटने के बाद उन्होंने बेंगलुरु में नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज़ (NCBS) की स्थापना की। यह केंद्र आज भारतीय विज्ञान का “पावरहाउस” माना जाता है, एक ऐसी जगह जहाँ दुनिया भर के वैज्ञानिक शोध करने आते हैं। उन्हें NCBS का पहला निदेशक बनाया गया था।
सम्मान और पहचाना
उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें कई बड़े सम्मान मिले:
पद्म भूषण (1984)
पद्म विभूषण (2006)
रॉयल सोसाइटी (FRS) की दुर्लभ सदस्यता
नेशनल रिसर्च प्रोफ़ेसर का खिताब
ये सम्मान बताते हैं कि वे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए भी कितने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक थे।
विरासत: आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
डॉ. सिद्दी़की को लोग सिर्फ एक महान वैज्ञानिक के रूप में नहीं, बल्कि एक शानदार शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में भी याद करते हैं। उन्होंने कई युवा वैज्ञानिकों को तैयार किया, जिनमें से कई आज शोध के नए क्षेत्र बना रहे हैं।
उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि अगर जिज्ञासा, मेहनत और सच्ची लगन हो, तो छोटे-से कस्बे से निकला इंसान भी दुनिया बदल सकता है।
क़ौमी फरमान डिजिटल मीडिया नेटवर्क

