लोकसभा में वंदे मातरम के 150वें वर्षगांठ पर बहस के दौरान एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक ऐसी स्पीच दी, जो न सिर्फ संविधान की दीवारों को हिला गई, बल्कि सदन की हवा को भी तल्ख कर दिया। ‘वी द पीपल’ से शुरू होने वाले हमारे संविधान को किसी देवी-देवता के नाम पर नत्थी करने की कोशिश को ओवैसी ने सिरे से खारिज करते हुए कहा, “किसी नागरिक को किसी ख़ुदा या देवी की इबादत के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल है!” उनकी ये बातें सदन में तालियां तो बटोर रही थीं, लेकिन सत्ताधारी खेमे में खलबली मचा रही थीं।
संविधान की ढाल: जबरन गान का विरोध
ओवैसी ने अपनी स्पीच की शुरुआत स्पीकर को धन्यवाद देते हुए की, लेकिन जल्द ही मुद्दे पर आ गए। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान का पहला पन्ना ही विचार, अभिव्यक्ति, आस्था, धर्म और पूजा की पूर्ण आजादी देता है। “राज्य किसी एक धर्म की संपत्ति नहीं हो सकता,” उन्होंने गरजते हुए कहा। वंदे मातरम को राष्ट्रभक्ति का ‘टेस्ट’ बनाने की कोशिश को वे संविधान सभा के फैसलों के खिलाफ बता रहे थे। याद दिलाते हुए बोले, “संविधान सभा में वंदे मातरम को लेकर बहस हुई, लेकिन प्रीएम्बल को किसी देवी के नाम से शुरू करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया गया। फिर आज क्यों जबरन थोप रहे हैं?”
उनकी आवाज में वो आग थी, जो मुसलमानों पर लगातार हो रहे हमलों का दर्द उजागर कर रही थी। “मस्जिदों पर हमले, घरों पर धावा, हमारे पहनावे और कारोबार पर सवाल, फिर भी हम इस देश से मोहब्बत करते हैं। हम कभी नहीं छोड़ेंगे!” ओवैसी ने मुस्लिम समुदाय की देशभक्ति को बयां करते हुए कहा कि ईमान और नागरिक कर्तव्य में कोई टकराव नहीं। अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। “हम अपनी मां की इबादत नहीं करते, न ही कुरान की। उम्मुल मोमिनीन हमारी मां हैं, लेकिन पूजनीय नहीं।”
राष्ट्रवाद का ‘धार्मिक रंग’: विभाजन की आग?
स्पीच का सबसे तीखा हिस्सा था राष्ट्रवाद को धर्म से जोड़ने पर चोट। ओवैसी ने चेतावनी दी, “अगर भारत को देवी कहकर राष्ट्रवाद को धर्म में बदल दोगे, तो यह गांधी, अंबेडकर, टैगोर और बोस की विचारधारा को छोड़कर गोडसे और हिंदू राष्ट्रवाद की राह पर चलना होगा।” उन्होंने सवाल उठाया, “भारत में रहना है तो वंदे मातरम गाना होगा? यह संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ है!”
ऐतिहासिक तथ्यों से लैस ओवैसी ने याद दिलाया कि 1942 में जिन्ना की पार्टी ने ब्रिटिश के खिलाफ हिंदू-मुस्लिम गठबंधन बनाया था। “हम जिन्ना के खिलाफ थे, इसलिए भारत चुना। वंदे मातरम स्वतंत्रता का नारा था, लेकिन जबरन लागू करना संविधान का उल्लंघन है।” उन्होंने जोर दिया, “देशभक्ति को सर्टिफिकेट से साबित नहीं किया जाता। यह गरीबी मिटाने, अन्याय रोकने में दिखती है, न कि किसी गीत पर जबरन टिकाने से।”
सदन में हंगामा, बाहर बहस छिड़ी
ओवैसी की यह स्पीच सदन में विपक्ष की तालियों से गूंजी, लेकिन बीजेपी सदस्यों के चेहरे तनावग्रस्त नजर आए। स्पीच के बाद सोशल मीडिया पर #OwaisiOnVandeMatram ट्रेंड करने लगा, जहां समर्थक इसे ‘संवैधानिक हथियार’ बता रहे हैं, तो आलोचक ‘देशद्रोही’ करार दे रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बहस धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय प्रतीकों की जंग को नई ऊंचाई देगी। ओवैसी ने समापन में कहा, “वतन की मोहब्बत कंडीशनल नहीं हो सकती। संसद सभी के लिए खुली होनी चाहिए।”
क्या यह स्पीच संवैधानिक बहस को नई दिशा देगी, या राजनीतिक ध्रुवीकरण को हवा? वक्त ही बताएगा।
~क़ौमी फरमान डिजिटल मीडिया नेटवर्क

