(रईस खान)
कुरआन पाक की सूरह सबा (सूरह 34) की आयतें 11 से 19 तक न सिर्फ आध्यात्मिक सबक देती हैं, बल्कि आधुनिक विज्ञान के आईने में भी चमकती हैं। हज़रत दाऊद और सुलेमान (अ.स.) की करामात, तांबे का बहना, हवा पर उड़ान, और प्राचीन सबा शहर की तबाही, ये सब पुरातत्व और साइंस के सबूतों से जुड़े हुए हैं। आइए, इन आयतों की वैज्ञानिक तफसीर को आसान लफ्ज़ों में समझें, जो 1400 साल पुरानी किताब में आज भी सच्चाई बयान करती है।
हज़रत दाऊद (अ.स.) का लोहा मुलायम करने का चमत्कार: धातु विज्ञान की झलक
सूरह सबा की आयत 11 में अल्लाह फरमाता है कि हज़रत दाऊद (अ.स.) के लिए लोहा “मुलायम” हो गया, ताकि ऊंची झोंपड़ियां, कवच और कड़ियां बनाई जा सकें। ये कोई जादू नहीं, बल्कि प्राचीन धातुकर्म (मेटलर्जी) का कमाल था। आज के साइंटिस्ट कहते हैं कि लोहे को गर्म करके आकार देना, यानी फोर्जिंग, 1200 ईसा पूर्व से इजराइल में होता था। पुरातत्व खुदाई में फिलिस्तीन के अवशेषों से ऐसे कवच मिले हैं। तफसीरकारों जैसे हसन बसरी के मुताबिक, ये चमत्कार था, लेकिन साइंस इसे एलॉयिंग (मिश्रण) से जोड़ती है। सोचिए, बिना आग के लोहा मोम की तरह नरम, ये तो अल्लाह की कुदरत का नमूना है!
सुलेमान (अ.स.) की हवा पर सवारियां और तांबे का झरना: एयरोडायनामिक्स और माइनिंग का राज़
आयत 12-13 में सुलेमान (अ.स.) को हवा आज्ञाकारी बनी, सुबह का सफर एक महीने का, शाम का भी! तफसीर में इब्न अब्बास कहते हैं, ये उनका “फ़रश” हवा पर उड़ता था, जो आज के हवाई जहाज़ जैसा लगता है। साइंस में इसे एरोडायनामिक्स (हवा की गति कंट्रोल) से जोड़ा जाता है। प्राचीन भूमध्यसागरीय सभ्यताओं में हवा से तेज़ नावें चलती थीं।
फिर तांबा, “पिघला हुआ तांबा बहा दिया”। ये हाइड्रोथर्मल स्प्रिंग्स (गर्म पानी के झरने) का वर्णन है, जहां तांबा प्राकृतिक रूप से पिघलकर बहता था। कांस्य युग (3000 ई.पू.) में बड़े बर्तन, तालाब जैसे डिशेज बनते थे। इजराइल के पुरातत्व में ऐसे अवशेष मिले। और जिन्न? वो महल, मूर्तियां, देग बनाते थे, साइंस इसे कुशल मजदूरों या लीवर सिस्टम (मशीनरी) का प्रतीक मानती है। सुलेमान (अ.स.) ने यरूशलेम में मस्जिद ए अक्सा ऐसे ही बनवाया!
मौत का अनोखा सबक: मकड़ी के जाले की ताकत
आयत 14 में सुलेमान (अ.स.) की मौत का जिक्र है, उनकी लाठी मकड़ी के जाले पर टिकी रही, जबकि जिन्न काम करते रहे। साइंस कहती है, मकड़ी का जाला स्टील से पांच गुना मजबूत होता है (तनाव 1.3 GPa)। ये बायोलॉजी का कमाल है, जो बताता है कि मौत के बाद भी कुदरत के कानून चलते रहते हैं। इब्न कसीर की तफसीर में ये चमत्कार है, लेकिन साइंस इसे प्रकृति की मिसाल मानती है।
सबा और सना शहर: बागों की बहार से बाढ़ की बरबादी तक
आयत 15-19 साबा के लोगों की कहानी बयान करती हैं, दो बाग दाएं-बाएं, रास्ते, मुसाफिरों को आराम। ये प्राचीन सबा साम्राज्य (यमन, 1000 ई.पू.) का जिक्र है। राजधानी मआरिब में विशाल बांध था, जो 9600 हेक्टेयर जमीन सिंचित करता था। ग्रीक लेखक प्लिनी ने इसे “हरा-भरा” कहा। व्यापारिक रास्ते (लोहा, मसाले) पर नहरें थीं, जो यात्रियों को पानी देती थीं।
लेकिन नेअमतों का नशा हुआ तो “सय्ल अल-अरिम”, यानी बांध टूटा! 542 ई. में मआरिब बांध (16 मीटर ऊंचा) फूटा, बाढ़ ने सब तबाह कर दिया। हाइड्रोलॉजी (पानी विज्ञान) के मुताबिक, मरम्मत न होने से ये हुआ। पुरातत्व (होलेवी, ग्लेजर की खुदाई) से शिलालेख मिले, जो कुरआन की सच्चाई साबित करते हैं। “अरिम” का मतलब ही “बांध” है यमनी भाषा में!
कुरआन का वैज्ञानिक चमत्कार आज भी जिंदा है। ये आयतें सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि शुक्रअदायगी और नेअमतों के कद्र का पैगाम हैं। 7वीं सदी में जो वर्णन हुआ, वो आज पुरातत्व से मेल खाता है। कुछ आलोचक इसे मिथक कहें, लेकिन सबूत झूठ नहीं बोलते।

