(रईस खान)
राजनीति के कठोर मैदान में जहाँ सत्ता की लहरें हर तरफ उफान मारती हैं, वहाँ एक ऐसी शख्सियत जो बिना झुके, बिना डरे, आम आदमी की पुकार को संसद के गुम्बद तक पहुँचाती है। आम आदमी पार्टी आप के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह, वो नाम जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने और जनता के हक की आवाज बनने के लिए जाना जाता है। बुधवार, 17 दिसंबर को नए महाराष्ट्र भवन में आयोजित लोकमत पार्लियामेंट्री अवॉर्ड्स 2024 – 25 के भव्य समारोह में उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद ऑफ द ईयर’ का प्रतिष्ठित सम्मान मिला। यह अवॉर्ड पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री भूषण रामकृष्ण गवई के करकमलों से ग्रहण किया गया, जो न सिर्फ उनकी जिरहबाजी की कूवत का आईना है, बल्कि लोकतंत्र की रूह को जिंदा रखने वाले बेहतरीन इंसान का भी सबूत।
संजय सिंह का जन्म 23 मार्च 1972 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में एक शिक्षक दंपति के घर हुआ। पिता दिनेश सिंह और माता राधिका सिंह, दोनों ही शिक्षा के दीपक जलाने वाले। बचपन से ही सामाजिक मुद्दों की ओर उनका झुकाव था, जो बाद में उनकी जिंदगी का मकसद बन गया। शिक्षा के मोर्चे पर उन्होंने ओडिशा के ओरिसा स्कूल ऑफ माइनिंग इंजीनियरिंग से माइनिंग इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया। लेकिन नौकरी की दुनिया में कदम रखने के बजाय, उन्होंने सामाजिक आंदोलनों का रास्ता चुना। वो दौर था जब भ्रष्टाचार और गरीबी के खिलाफ आवाजें बुलंद हो रही थीं, संजय सिंह उसी आग के एक चिंगारी बने।
राजनीति में उनका आगमन 2012 में आप के गठन के साथ हुआ, जब अरविंद केजरीवाल जैसे दूरदर्शी नेताओं के साथ उन्होंने पार्टी की नींव रखी। शुरुआत से ही वो पार्टी के पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी और नेशनल एक्जीक्यूटिव के अहम सदस्य रहे। 2018 से दिल्ली से राज्यसभा सांसद चुने गए, और तब से संसद के गलियारों में उनकी तीर-सी भाषणों ने सत्ता की नींद उड़ा रखी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और राजस्थान में पार्टी के इंचार्ज के तौर पर उन्होंने जमीनी स्तर पर AAP को मजबूत किया। नेशनल स्पोक्सपर्सन के रूप में उनकी कलम और जुबान हमेशा हक की जंग लड़ती नजर आती है। चाहे किसान आंदोलन का साथ हो, या दिल्ली में भ्रष्टाचार के काले साये को चीरना, संजय सिंह ने हमेशा जनता के दर्द को अपना दर्द बनाया।
उनकी जिंदगी में काँटे भी कम न थे। 2023 में एक्साइज पॉलिसी केस में गिरफ्तारी हुई, जेल की सलाखों का सामना किया, सस्पेंशन की मार झेली। लेकिन ये सब कुछ उनकी जिद की मिसाल बने, जैसे इकबाल के शेर कहते हैं, “ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है!” संजय सिंह की शख्सियत में यही बुलंदी है; सत्ता से टकराव के बावजूद, वो कभी झुके नहीं। घरेलू मोर्चे पर वो शांतिप्रिय इंसान हैं, पत्नी अनीता सिंह के साथ 13 मई 1994 को विवाह बंधन में बंधे, एक बेटा और एक बेटी उनके जीवन की रोशनी हैं। अब इस लोकमत अवॉर्ड की बात करें, तो यह सम्मान 2017 से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है, जो उन सांसदों को नवाजता है जो प्रगति लाते हैं और उम्मीद जगाते हैं।
इस बार चार लोकसभा और चार राज्यसभा सांसदों को चुना गया, जूरी में प्रफुल्ल पटेल की अध्यक्षता में सौगता रॉय, भार्गव भूषण महताब, कनिमोझी जैसे दिग्गज शामिल थे। संजय सिंह ने पुरस्कार ग्रहण करते हुए कहा, “यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि उन लाखों आम आदमी का है जो सत्ता के सामने झुकते नहीं। मैं संसद में हक़ और इंसाफ की आवाज़ बुलंद करते रहने का वादा करता हूँ।” उनकी यह बातें ग़ालिब के शायराना अंदाज में गूँजती हैं, हर जद्दोजहद के बाद नई ताकत के साथ खड़े हो जाना।
संजय सिंह जैसी शख्सियतें ही लोकतंत्र को मजबूत बनाती हैं। सत्ता से टकराव के बावजूद, यह अवॉर्ड साबित करता है कि नेकी का फल कभी खाली नहीं जाता। उम्मीद है, यह सम्मान उनके हौसले को और बुलंद करेगा, ताकि संसद की दीवारें भी हिल उठें।

